दया याचिका खारिज होने के बाद भी उम्रकैद सजायाफ्ता को कर दिया रिहा
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एक्सक्लूसिव [email protected] LUCKNOW (24 Nov): दया याचिका खारिज होने के बाद भी ट्रिपल मर्डर में उम्रकैद की सजा काट रहे अपराधी को पांच साल सजा काटने पर रिहा कर दिया गया। हैरान रह गए
न आप, लेकिन यह बात है बिलकुल सच। इतना ही नहीं, रिहाई के दौरान कई अन्य नियमों की भी जमकर धज्जियां उड़ाई गईं। यह पूरा 'खेल' हुआ पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान। वह भी तब,
जब सरकार कार्यवाहक मोड में थी और तीन दिन बाद ही सीएम योगी आदित्यनाथ को शपथ लेनी थी। ऐसे खूंखार अपराधी और राजनेताओं की मिलीभगत ने हत्याकांड में मारे गए इकलौते बेटे की मां को भीतर तक झकझोर
दिया है। सरकार और उसके कारिंदों से हताश हो चुकी 90 वर्षीया वृद्धा ने हाईकोर्ट से इंसाफ की गुहार लगाई है। कोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है। जमीनी रंजिश में हुई थी हत्या बुलंदशहर के डिबाई
थानाक्षेत्र निवासी प्रकाशवती के इकलौते बेटे और दो भाइयों की हत्या जमीनी रंजिश के चलते कर दी गई। इस मामले में तीन सगे भाइयों जैनी सिंह, बृजमोहन सिंह और बृजेंद्र सिंह समेत छह लोगों को अरेस्ट
किया गया। कोर्ट में केस चला और दिसंबर 2012 में सभी छहों आरोपियों पर दोष साबित हो गया। कोर्ट ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई। चार साल तक आरोपी जैनी सिंह बुलंदशहर जेल में सजा काटता रहा। ट्विटर
पर महिला को बोला 'मोटी' तो उसने लड़के पर कर दिया मॉलेस्टेशन का केस दया याचिका हुई खारिज इसी बीच वर्ष 2016 में जैनी सिंह ने खुद के 70 साल होने का हवाला देते हुए दया याचिका दाखिल
की। प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में दया याचिका समिति ने जैनी सिंह के बारे में बुलंदशहर के जिलाधिकारी व एसपी से आख्या मंगाई। जिलाधिकारी ने तो जैनी की रिहाई की संस्तुति की लेकिन, एसपी ने इसका
कड़ा विरोध किया। इसके अलावा भी अन्य अधिकारियों ने जैनी की रिहाई के विपक्ष में अपनी संस्तुति दी। जिसे देखते हुए दया याचिका समिति ने 28 अक्टूबर 2016 को जैनी सिंह की दया याचिका खारिज कर दी।
मंत्रालय की फर्जी वेबसाइट बना हजारों को लगाया लाखों का चूना रहस्यमयी अंदाज में हुई रिहाई दया याचिका खारिज होने के बाद भी शातिर जैनी सिंह ने हिम्मत नहीं हारी और सपा सरकार में रिहाई की कोशिशें
जारी रखीं। उसकी कोशिशों ने रंग दिखाया और तमाम आपत्तियों व कानूनी रोक के बावजूद रहस्यमयी अंदाज में 15 मार्च 2017 को उसकी रिहाई के आदेश दे दिये गए। जिसके बाद कैदी जैनी सिंह को रिहा कर दिया
गया। गौरतलब है कि जिस वक्त यह आदेश दिये गए उस वक्त सपा सरकार कार्यवाहक मोड में थी और चुनाव के रिजल्ट में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसी के चार दिन बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने शपथ
ग्रहण की थी। यूपी के इस गांव में दहेज लेने वाले का कर दिया जाता है सामाजिक बहिष्कार आरटीआई में माना उच्च स्तर पर हुआ आदेश जैनी सिंह की रिहाई से हैरान स्थानीय निवासी भानुदास मलिक ने आरटीआई के
जरिए मुख्यालय कारागार प्रशासन से जब वर्ष 2005 से 2012 के बीच उम्र को देखते हुए रिहा किये गए कैदियों व जैनी सिंह की रिहाई को लेकर जानकारी मांगी तो चौंकाने वाली जानकारी दी गई। जवाब में बताया
गया कि वर्ष 2005 से 2012 के बीच कुल 223 पुरुष व पांच महिला बंदियों को रिहा किया गया। इसमें यह भी बताया गया कि रिहा किये गए सभी 228 कैदियों में से 227 को दया याचिका समिति की संस्तुति पर रिहा
किया गया जबकि, जैनी सिंह को समिति द्वारा रिहाई खारिज करने के बावजूद उच्च स्तर से शासन द्वारा निर्गत रिहाई आदेश पर रिहा किया गया। पुलिस ने भी जमकर बरसाई कृपा नियमत: जिन कैदियों के खिलाफ
मुकदमे पेंडिंग हों, उन्हें दया याचिका के आधार पर रिहा नहीं किया जा सकता। जैनी सिंह के खिलाफ रायबरेली के जगतपुर थाने में धोखाधड़ी, कूटरचना समेत विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज था। इस मुकदमे के
विवेचक तत्कालीन एसओ अमर सिंह रघुवंशी ने इस मामले में जैनी का कथित रूप से बयान दर्ज करते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी। हैरानी की बात यह है कि एसओ रघुवंशी ने उल्लेख किया कि जैनी सिंह ने थाने में
आकर बयान दिया। जबकि, उस वक्त जैनी बुलंदशहर जेल में अपनी सजा काट रहा था। बुजुर्ग प्रकाशवती को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रहे आरटीआई एक्टिविस्ट कुंवर मोहित सिंह ने बताया कि जब उन्हें आरटीआई के
जरिए इस फर्जीवाड़े का पता चला तो उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस के उच्चाधिकारियों से की। विभागीय जांच में एसओ अमर सिंह रघुवंशी को मिसकंडक्ट (कदाचार) का दोषी पाया गया और फाइनल रिपोर्ट को वापस
लेकर विवेचना शुरू की गई। हालांकि, बावजूद इसके एसओ रघुवंशी के खिलाफ आगे कोई कार्रवाई न हो सकी।