संगीत से हार का बदला है सीमा की जीत
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Meerut : जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव ने कई समीकरणों को बदलने के साथ एक और काम किया है और वो है बदला लेने का। भले ही चुनावी मैदान में सीमा प्रधान जीती हों, लेकिन असली जीत का सेहरा अतुल
प्रधान के सिर पर बंधा है। ये संकेत हैं उस हार के बदले का जो संगीत सोम से वर्ष 2012 के चुनाव के दौरान मिली थी। इसलिए संगीत सोम अतुल प्रधान के जयकारों से पहले ही कलक्ट्रेट और उसके दायरे से
बाहर निकल गए थे।
वर्ष 2012 के विधानसभा के चुनाव में जब अतुल ने मेन स्ट्रीम राजनीति में कदम रखा था, तब उन्हें छात्रों के अलावा कोई नहीं जानता था, जबकि संगीत सोम राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी बन चुके थे। चुनाव
के नतीजे जब आए तो अतुल प्रधान संगीत सोम के आसपास भी दिखाई नहीं दे रहे थे। हजारों के अंतर से मिली हार की टीस तब से अतुल के मन में थी। यह चुनाव प्रचार और मतदान के दिन भी देखने को मिला।
अखिलेश यादव के सीएम बनने और युवाओं को तरजीह मिलने और अतुल प्रधान को समाजवादी छात्र सभा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अतुल प्रधान की लोकप्रियता जिले तक न सिमटकर पूरे प्रदेश में फैल गई। वहीं
सीएम से लगातार बढ़ती नजदीकियों का भी अतुल को काफी फायदा मिला, जिससे वेस्ट यूपी में सपा की राजनीति में अतुल की साख एक जीते हुए विधायक के समानांतर हो गई।
भले ही जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अतुल की वाइफ कैंडीडेट थीं, लेकिन अतुल की साख से लेकर राजनीतिक करियर तक सब दांव पर लगा हुआ था। जानकारों की मानें तो अगर सीमा प्रधान की हार हो जाती तो
अतुल प्रधान वेस्ट यूपी की राजनीति से तो क्या मेरठ की राजनीति से भी गायब हो जाते, लेकिन इस जीत ने अतुल प्रधान के कद को और बड़ा बना दिया है। सपा के सीनियर लीडर्स की मानें तो अतुल की इस जीत ने
उन्हें सीएम अखिलेश यादव के और भी करीब लाकर खड़ा कर दिया है।
इस चुनावी जीत का असर काफी दूरगामी देखा जा रहा है। पहला, सपा में अतुल प्रधान का कद वेस्ट यूपी में कई सीनियर लीडर के मुकाबले में बढ़ जाएगा। दूसरा, विधायकों के टिकट देने से लेकर काटने तक में
अतुल की भूमिका अहम हो जाएगी। तीसरा, अतुल जैसे यंग ब्लड के पॉवरफुल होने से सपा की राजनीति में धार बढ़ने के साथ आक्रामक भी होगी, जिसका असर आगामी चुनावों में भी बढ़ेगा।