राजनीति: सम्मान और प्रोत्साहन का गणित


राजनीति: सम्मान और प्रोत्साहन का गणित

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कुमार विनोद महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की याद में हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रामानुजन की सवा सौवीं जयंती पर देश में


योग्य गणितज्ञों की संख्या कम होने पर चिंता जताते हुए कहा था कि लोगों में यह धारणा है कि गणित की पढ़ाई से आकर्षक भविष्य की संभावना नहीं है, इसे निश्चित तौर पर बदलने की जरूरत है। इस दिवस को


मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में गणित के प्रति जागरुकता बढ़ाना है। इसके मद्देनजर इस दिन गणित के शिक्षकों और छात्रों को प्रशिक्षण दिया जाता है, विभिन्न जगहों पर शिविर आयोजित किए जाते हैं,


ताकि गणित से संबंधित क्षेत्रों में टीचिंग-लर्निंग सामग्री के विकास, उत्पादन और प्रसार पर प्रकाश डाला जा सके। इंटरनेशनल सोसाइटी यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक


संगठन) और भारत ने गणित सीखने और इसकी समझ को विकसित करने के लिए साथ मिल कर काम करने पर सहमति व्यक्त की थी। इलाहाबाद स्थित ‘नेशनल अकादेमी आॅफ साइंसेज इंडिया’ इस दिन ‘गणित के अनुप्रयोग और


रामानुजन’ कार्यशाला का आयोजन करती है, जिसमें देश-विदेश से गणित के क्षेत्र में लोकप्रिय व्याख्याता और विशेषज्ञ भाग लेते हैं। वैसे रामानुजन के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी’


भी 2015 में बन चुकी है, जिसमें तमिलनाडु के उनके गांव से शुरू और इंग्लैंड में उनके प्रसिद्ध होने तक के सफरनामे को दिखाया गया है। इस फिल्म में अभिनेता देव पटेल ने 1913 के पच्चीस वर्षीय शिपिंग


क्लर्क और गणितज्ञ का किरदार निभाया था। इसका निर्देशन मैथ्यू ब्राउन ने किया था। किसी भी वैज्ञानिक के लिए नोबेल पुरस्कार पाने का ख्वाब देखना स्वाभाविक है, क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा


पुरस्कार होता है। दुनिया का शायद ही कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति ऐसा होगा, जिसे नोबेल पुरस्कारों के बारे में जरा भी जानकारी न हो। मगर दुनिया का कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी गणितज्ञ का नाम नहीं बता सकता,


जिसे गणित के लिए कभी नोबेल पुरस्कार मिला हो। गूगल या अन्य किसी सर्च इंजन की मदद से इसका जवाब तो चुटकियों में दिया जा सकता है, लेकिन वहां से भी इस प्रश्न का जवाब तभी मिलेगा, जब गणित के लिए


नोबेल पुरस्कार दिया जाता हो। गणित जैसे महत्त्वपूर्ण विषय के लिए नोबेल पुरस्कार न होना, है न अचंभे की बात! वैसे इस अचंभे के पीछे बताई जाने वाली वजहें भी कुछ कम रोचक नहीं। मिशिगन यूनिवर्सिटी


के गणितज्ञ लिजेन जी ने 2013 के इंटरनेशनल कांग्रेस आॅफ चाइनीज मैथेमेटीशियन्स के जर्नल में इस बारे में लिखा था। उन्होंने बताया कि अल्फ्रेड नोबेल अपने काम में गणित का ज्यादा उपयोग नहीं करते थे


और न ही गणित में रुचि लेते थे, इसलिए गणित के लिए नोबेल पुरस्कार देने की बात कभी उनके दिमाग में आई ही नहीं। इसी के चलते उन्होंने गणित को नोबेल पुस्कार की सूची से बाहर रखा। एक सिद्धांत यह भी


है कि स्वीडन और नॉर्वे के राजा आॅस्कर-2 ने यूरोप के गणितज्ञों के लिए एक पुरस्कार शुरू किया था। उनको यह पुरस्कार देने के लिए उस समय के महान गणितज्ञ गोस्टा मिटाग लेफलर ने राजी किया था। ऐसे में


अल्फ्रेड ने सोचा होगा कि जब पहले से ही गणित का एक पुरस्कार दिया जा रहा है और उनकी गणित में दिलचस्पी वैसे भी नहीं थी, तो क्यों न किसी ऐसे क्षेत्र में पुरस्कार दिया जाए, जिसमें उनकी रुचि हो।


कुछ लोग यह भी कहते हैं कि नोबेल ने गणितज्ञों को अपनी सूची से बाहर इसलिए रखा, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं यह पुरस्कार उस समय के बड़े गणितज्ञों में शुमार स्वीडिश गणितज्ञ गोस्टा मिटाग लेफलर को


न मिल जाए। लोग नोबेल के इस डर का कारण यह बताते हैं कि लेफलर के एक महिला से अवैध संबंध थे। उसी महिला के साथ अल्फ्रेड नोबेल का भी रिश्ता था। इसलिए अल्फ्रेड ने गणित का नोबेल नहीं देने में ही


भलाई समझी, हालांकि बुद्धिजीवियों ने इस कारण को खारिज किया है। हालांकि गणित में नोबेल पुरस्कार न होने के बावजूद कुछ गणितज्ञों को अन्य क्षेत्रों में उनके काम के लिए इस सम्मान से नवाजा जा चुका


है। 1950 में गणितज्ञ बर्ट्रेंड रसेल को साहित्य का नोबेल, 1954 में मैक्स बॉर्न और वॉल्टर वॉन को भौतिकी का नोबेल और 1994 में जॉन नेश को गेम थ्योरी के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिल चुका


है। मिशिगन विश्वविद्यालय के गणितज्ञ लिजेन जी के मुताबिक, नोबेल द्वारा अपने नाम से पुरस्कार शुरू करने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। 1888 में, एक फ्रांसीसी शोक संदेश ने अल्फ्रेड नोबेल को


डायनामाइट के आविष्कारक के रूप में वर्णित किया, जिसमें उन्हें ‘मर्चेंट आॅफ डेथ’ कहा गया। गलती अखबार की थी। दरअसल, जिस आदमी की मृत्यु हुई थी, वह अल्फ्रेड (1833-1896) का भाई लुडविग नोबेल था। इस


खबर ने अल्फ्रेड नोबेल को परेशान कर दिया, जो उम्मीद करते थे कि कम से कम उनके शोक संदेश में तो ‘मर्चेंट आॅफ डेथ’ जैसे शब्द शामिल नहीं होंगे और इस तरह पुरस्कार स्थापित करने का विचार अल्फ्रेड


नोबेल के मन में आया। गणित का नोबेल पुरस्कार माना जाने वाला फील्ड्स मेडल गणित के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसका नाम कनाडाई गणितज्ञ जॉन चार्ल्स फील्ड के सम्मान में रखा गया था।


फील्ड मेडल इंटरनेशनल मैथमेटिकल यूनियन (आईएमयू) की अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में चालीस साल से कम उम्र के दो, तीन, या चार गणितज्ञों को दिया जाने वाला एक पुरस्कार है, जो हर चार साल में एक बार दिया


जाता है। अंडर-40 नियम फील्ड की इच्छा ‘जबकि किए गए कार्य को पहले ही मान्यता मिल चुकी है, अब प्राप्तकर्ता को भविष्य में और उपलब्धि प्राप्त करने और दूसरों को नए प्रयासों के लिए प्रोत्साहित


किया जा सके’, पर आधारित है। इसके अलावा, एक व्यक्ति को केवल एक फील्ड पदक से सम्मानित किया जा सकता है; विजेताओं को भविष्य में दुबारा सम्मानित नहीं किया जा सकता। यह नोबेल पुरस्कार के विपरीत है,


जिसमें एक व्यक्ति या इकाई को एक से अधिक बार दिया जा सकता है, चाहे एक ही श्रेणी में (जॉन बर्दीन और फ्रेडरिक सेंगर), या विभिन्न श्रेणियों में (मैरी क्यूरी और लिनस पाउलिङ्) हो। फिनिश गणितज्ञ


लार्स अहल्फोर्स और अमेरिकी गणितज्ञ जेसी डगलस को इस पदक से पहली बार 1936 में सम्मानित किया गया था, और इसे 1950 से हर चार साल पर दिया जाता है। इसका उद्देश्य युवा गणितीय शोधकर्ताओं को मान्यता


और प्रोत्साहन देना है, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में प्रमुख योगदान दिया है। 2014 में, मरियम मिर्जाखानी फील्ड पदक जीतने वाली पहली ईरानी और पहली महिला बनीं। कुल मिलाकर, साठ लोगों को फील्ड पदक


से सम्मानित किया गया है। भारतीय मूल के गणितज्ञ अक्षय वेंकटेश को छत्तीस वर्ष की उम्र में 2018 के फील्ड्स मेडल सम्मान से नवाजा गया था। वे यह पुरस्कार जीतने वाले दूसरे भारतीय मूल के व्यक्ति


हैं। उनसे पहले 2014 में मंजुल भार्गव यह पुरस्कार जीत चुके हैं। अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में नंबर थ्योरी के विशेषज्ञ वेंकटेश ने महज तेरह साल की उम्र में यूनिवर्सिटी आॅफ वेस्टर्न


आॅस्ट्रेलिया में गणित और फिजिक्स में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। मंजुल भार्गव कहते हैं कि ‘मैंने हमेशा से पाया है कि तीन विषय, संगीत, कविता और गणित लगभग एक जैसे हैं। मैं तीनों के बारे में


एक ही तरह से सोचता हूं। स्कूल में, गणित को आमतौर पर ‘विज्ञान वर्ग’ में डाला जाता है, लेकिन गणितज्ञों के लिए यह संगीत, कविता या चित्रकला की तरह एक रचनात्मक कला है।’