Cbi के पद से अनिल सिन्हा हुए रिटायर, अस्थाना को मिला पदभार
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सीबीआइ निदेशक अनिल सिन्हा शुक्रवार को अपने पद से सेवानिवृत्त हो गए। अनिल सिन्हा ने गुजरात काडर के वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को अपना प्रभार सौंप दिया। सरकार ने अभी जांच ब्यूरो के
लिए पूर्णकालिक प्रमुख की घोषणा नहीं की है। गुजरात काडर के 1984 बैच के अधिकारी अस्थाना को दो दिन पहले ही सीबीआइ में अतिरिक्त निदेशक के रूप में प्रोन्नत किया गया था। इससे पहले विशेष निदेशक
आरके दत्ता, जो केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुख के पद की दौड़ में थे, को विशेष सचिव के तौर पर गृह मंत्रालय भेज दिया गया था। मंत्रालय में पहली बार दूसरे विशेष सचिव का पद सृजित किया गया है। दस
साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि निवर्तमान सीबीआइ प्रमुख के उत्तराधिकारी का चयन नहीं किया गया है। सिन्हा ने शुक्रवार को दो साल का अपना कार्यकाल पूरा किया। सीबीआइ प्रमुख का चयन एक कॉलिजियम करता
है। इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता और प्रधान न्यायाधीश होते हैं। अभी कॉलिजियम की बैठक नहीं हो पाई है। साठ वर्षीय सिन्हा ने तब सीबीआइ की कमान
संभाली थी, जब जांच ब्यूरो ‘पिंजरे में बंद तोता’ और ‘बंद जांच एजंसी’ जैसे तीखे कटाक्षों का सामना कर रहा था। सिन्हा ने सीमित सोशल सर्किल के साथ मीडिया से दूर रहकर एजंसी के कामकाज को संभाला और
उसे आगे बढ़ाया। सिन्हा एजंसी के मृदुभाषी, लेकिन दृढ़ नेता साबित हुए। उन्होंने शीना बोरा हत्याकांड, विजय माल्या ऋण गड़बड़ी कांड जैसे कई महत्त्वपूर्ण मामलों की जांच का मार्गदर्शन किया। माल्या
मामले में सिन्हा ने यह तय किया कि इस शराब कारोबारी के खिलाफ बंद पड़ चुकी उसकी किंगफिशर एयरलाइंस को मिले ऋण की कथित रूप से अदायगी नहीं किए जाने को लेकर मामला दर्ज हो। जबकि बैंक शिकायत लेकर
सीबीआइ नहीं पहुंची थी। सिन्हा ने शीना बोरा हत्याकांड की जांच सीबीआइ को सौंपे जाने के बाद अपनी टीमों को इस मामले में पीटर मुखर्जी की भूमिका खंगालने का निर्देश दिया। उन्होंने यह पक्का किया कि
सीबीआइ सार्वजनिक बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों के ढेरों मामलों की सघनता से तहकीकात करे। जबकि बैंक संभावित मध्यमार्ग बंद हो जाने के डर से इन मामलों की जांच शुरू किए जाने के पक्ष में नहीं
थे। बैंकों को लगता था कि ऋण उल्लंघनकर्ताओं से बातचीत से बीच का रास्ता निकल सकता है।