MOVIE REVIEW: बच्चों को पसंद आएगी 'रैम्पेज'
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क्या होता है, एक वीडियो गेम का सिनेमाई रूप ले लेना? कैसा महसूस होता है उसे देखते हुए? और क्या है उसकी सफलता के पैमाने? शायद यह कि उसे देखने वाले खुद को एक ‘दर्शक’ के बजाए एक ‘खिलाड़ी’ महसूस
करें! मानो वह परदे के सामने नहीं, अंदर हैं... तमाम खतरों से खुद को बचाते हुए...अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए... विरोधियों को ढेर करते हुए... पैंतरे बदलते हुए... तमाम साजिशों को नाकाम करते हुए।
बीते दिसंबर हम सबने एक फिल्म देखी थी, ‘जुमांजी: वेलकम टू दि जंगल’। एक वीडियो गेम के अंदर फंसे कुछ युवाओं पर आधारित इस फिल्म ने जबर्दस्त रोमांच की खुराक दी थी। ‘रैम्पेज’ भी इसी श्रेणी की
फिल्म है।
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हालांकि इसकी धार ‘जुमांजी: वेलकम टू दि जंगल’ की तरह पैनी नहीं है। जहां जुमांजी को बनाने वालों ने समय की मांग को देखते हुए एक ‘बोर्ड गेम’ को एक ‘वीडियो गेम’ में तब्दील कर दिया था, वहीं
रैम्पेज के ज्यादातर तत्व 90 के दशक की फिल्मों के हैं। दर्शकों की सोच की सीमा से बहुत आगे न जा पाने के चलते यह एक विस्तृत दर्शकवर्ग की पसंद बनते-बनते रह जाती है।
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यह है कहानी...
रैम्पेज कहानी है एक बायोलॉजिस्ट डेविस (ड्वेन जॉनसन) की, जिसे जानवरों से खासा लगाव है। इस बीच डेविस के दोस्त जॉर्ज (एल्बीनो सिल्वरबैक प्रजाति का गोरिल्ला) के शरीर में एक विचित्र रसायनिक गैस
का प्रवेश हो जाता है और उसका शरीर सामान्य से कई गुना बड़ा हो जाता है। यही रसायनिक गैस एक भेड़िये के शरीर में भी प्रवेश कर जाती है। जहां भेड़िया शहर में तबाही मचाने लगता है, वहीं जॉर्ज को धोखे
से बेहोशी के इंजेक्शन लगाकर हवाई जहाज से किसी सुरक्षित जगह ले जाने लगता है। इस बीच पता लगता है कि यह अपराधिक मंशा वाले दो व्यवसायी भाई-बहनों क्लेयर (मैलिन एकरमैन) और जेक (ब्रेट वेडेन) के गलत
प्रयोगों का नतीजा है। क्लेयर और जेक की प्रयोगशाला में काम करने वाली जेनेटिक इंजीनियर डॉ. केट काल्डवेल (नाओमी हैरिस) डेविस के पास जाकर उसे कई खूफिया जानकारियां देती है। दोनों को एहसास होता
है कि क्लेयर और जेक जरूर कोई खतरनाक योजना बना रहे हैं। इस बीच पता लगता है कि जॉर्ज और उस भेड़िये के अलावा कोई तीसरा जीव भी है, जिस पर रसायनिक गैस का असर हुआ है! हालात ऐसे बनते हैं कि तबाही की
नौबत आ जाती है। क्या डेविस इस तबाही को रोक पाएगा, अपने दोस्त जॉर्ज की जान बचा पाएगा? यही खुलासा करती है यह फिल्म।
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हॉलीवुड में प्रयोगों के विफल हो जाने की वजह से दुनिया में तबाही मचने पर कई फिल्में बन चुकी हैं। इतनी कि लिस्ट बनाने बैठें, तो जगह कम पड़ने लगेगी। जिन लोगों ने ऐसी फिल्में देख रखी हैं उनके लिए
इसमें मनोरंजन की संभावना जरा कम है। टीनेजर्स और छोटे बच्चों को यह फिल्म पसंद आ सकती है। इसके कई कारण हैं- तोड़फोड़ पर उतारू विशालकाय जानवर, तड़-तड़ चलती स्टेनगनें और... ड्वेन जॉनसन, जिनकी दिलकश
मुस्कान किसी को भी बांधने के लिए काफी है। हां, पर परिपक्व दर्शकों के लिए ये कारण नाकाफी हैं। और ऐसा लाजिमी भी है।
एक्टिंग के स्तर पर ड्वेन जॉनसन के अलावा नाओमी हैरिस और जेफरी डीन मोर्गन का काम भी प्रभावित करता है। बाकी कलाकार साधारण हैं, हालांकि उन सभी में सबसे ज्यादा खलता है मुख्य खलनायकों का काम
साधारण होना। मुख्य खलनायकों क्लेयर और जेक के अंदाज में न तो शातिरपना झलकता है, न ही दर्शक को उनसे नफरत होती है। वे फिल्म के किसी सामान्य किरदार की तरह ही परदे पर आते हैं और बिना कोई खास असर
छोड़े गायब हो जाते हैं।
कुछ एक दृश्य बेहद भावुक कर देने वाले हैं, जैसे ड्वेन और जॉर्ज के बीच सांकेतिक भाषा में होने वाली बातचीत और जॉर्ज के बचपन का एक दृश्य जो फ्लैशबैक में दिखाया गया है। दृश्य में नीली आंखों वाला
एक नन्हा गोरिल्ला सहमा सा शिकारियों की गाड़ी के नीचे छुपा हुआ है। शिकारी उसकी आंखों के सामने उसकी मां को मार रहे हैं। यही वह परिस्थिति थी जिसमें वह डेविस को मिला था। इस दृश्य का फिल्मांकन
काफी प्रभावी है। फिल्म का कैमरावर्क अच्छा है।
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